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माधव निदान sentence in Hindi

pronunciation: [ maadhev nidaan ]
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  • वे माधव निदान के अनुसार निम्न हैं।
  • किन्तु आठवीं सदी के प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्थ माधव निदान में इसका विस्तृत वर्णन है।
  • केवल काश्यप संहिता तथा माधव निदान में अम्लपित्त का वर्णनविस्तृत रूप से दिया गया है.
  • आयुर्वेद में रोग के निदान के लिए ` माधव निदान ' श्रेष्ठ ग्रंथ माना गया है।
  • अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, माधव निदान इत्यादि ग्रंथों का सृजन चरक और सुश्रुत को आधार बनाकर रचित की गयीं हैं।
  • आयुर्वेद में इस प्रकार से लक्षणो से युक्त रोग का नाम सन्निपातज ज़्वर {माधव निदान] के नाम से जाना गया हे।
  • माधवाचार्य वापिस वृन्दावन लौटे, एक वर्ष और साधना करके सिद्धि प्राप्त कर सके और माधव निदान जैसे महान ग्रन्थ की रचना की ।
  • अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, माधव निदान इत्यादि ग्रंथों का सृजन चरक और सुश्रुत को आधार बनाकर रचित की गयीं हैं।
  • अष्टाङ्ग संग्रह, अष्टाङ्ग हृदय, भाव प्रकाश, माधव निदान इत् यादि ग्रंथों का सृजन चरक और सुश्रुत को आधार बनाकर रचित की गयीं हैं।
  • आयुर्वेद के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘ माधव निदान ' के प्रणेता श्री माधवाचार्य ने आरम्भ में १ ३ वर्षों तक वृन्दावन में रहकर गायत्री अनुष्ठान किए थे।
  • चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अष्टांग हृदय, माधव निदान आदि ग्रंथों में रोग की पहचान करने की (उस समय उपलब्ध साधनों के तहत) विधियां उल्लिखित हैं।
  • के बारे मे भी इसी तरह से बहुत विस्तार से रोग की पहचान के लिये माधव निदान ग्रन्थ में विस्तार से बताया गया है / यह ठीक उसी तरह की वही
  • और माधव निदान में कहा भी हे की-मिथ्या आहार (भोजन) विहार (जीवन जीने) से दोष पेट में बड़ते हें, और वहां से अग्नि को दूषित करके ज्वर आदि रोगों की उत्पत्ति करते हें ।
  • ग्रन्थ-रचनाकार चरक संहिता-चरक सुश्रुत संहिता-सुश्रुत अष्टांग हृदय-वाग्भट्ट वंगसेन-वंगसेन माधव निदान-मधवाचार्य भाव प्रकाश-भाव मिश्र इन ग्रन्थों के अतिरिक्त वैद्य विनोद, वैद्य मनोत्सव, भैषज्य रत्नावली, वैद्य जीवन आदि अन्य वैद्यकीय ग्रन्थ हैं।
  • इसी प्रकार विभिन्न रोगों की पहचान, विभिन्न जड़ी-बूटियों, खनिजों, क्वाथ, चूर्ण, आसव, अरिष्ट इत्यादि के संविन्यास से जुड़ी सभी जानकारियाँ क्रमश: ‘ माधव निदान ', ‘ भव प्रकाश निघन्तु ' और ‘ श्रृंगधर संहिता ' में मिलती हैं जिन्हें संयुक्त रूप से ‘ लघु्त्-त्रयी ' के नाम से जाना जाता है.
  • यद्यपि रोगी तथा रोग को देख-परखकर रोग की साध्या-साध्यता तथा आसन्न मृत्यु आदि के ज्ञान हेतु चरस संहिता, सुश्रुत संहिता, भेल संहिता, अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, चक्रदत्त, शारंगधर, भाव प्रकाश, माधव निदान, योगरत्नाकर तथा कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं परन्तु रोगी या किसी भी व्यक्ति की आयु का निर्णय यथार्थ रूप में बिना ज्योतिष की सहायता के संभव नहीं है।

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